अवधेश कुमार सिंह ब्यूरो चीफ दैनिक उपदेश टाइम्स की बिधूना औरैया से रिपोर्ट
औरैया 12 मई देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सरकार को आज नहीं तो कल लॉक डाउन खोलना ही होगा लेकिन एक बड़ा प्रश्न यह है कि स्कूल खुलने के बाद बच्चों को पढ़ाने के लिए बड़ी संख्या में शिक्षक आज भी अपनी तैनाती स्थल से औसतन 100 किलोमीटर दूर से आते जाते हैं। अब यहां सवाल यह उठता है कि लॉक डाउन खुलने के पश्चात जो शिक्षक 100 किलोमीटर की दूरी तय करके स्कूल पहुंचेंगे वे सफर के दौरान आखिर सोशल डिस्टेंसिंग कैसे मेंटेन कर पायेंगे ? यदि सरकार शिक्षकों को उनके गृह जनपद में तैनाती का अवसर दे तो कोरोना की चैन टूट सकती है ?
बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों में तैनात शिक्षक आज भी बड़ी संख्या में अपने गृह जनपद से दूर अन्य जिलों में पढ़ाने को विवश हैं ? सरकार ने कई बार शिक्षकों को अंतर्जनपदीय स्थानांतरण की सुविधा प्रदान की जिसके कारण हजारों की संख्या में शिक्षक अपने गृह जनपद में पहुंच पाये लेकिन लगातार हो रही शिक्षक भर्तियों के कारण आज भी हजारों की तादात में शिक्षक ऐसी हैं जो अपने गृह जनपद से सैकड़ों किलोमीटर दूर नौकरी करने को विवश हैं । इस बार भी योगी सरकार ने शिक्षकों को अंतर्जनपदीय स्थानांतरण का मौका दिया था। शिक्षकों से ऑनलाइन आवेदन भी मांगे गये थे और आवेदनों में हुई त्रुटियों में सुधार के लिए भी शिक्षकों को एक मौका दिया गया था लेकिन कोरोना संक्रमण ने शिक्षकों की घर वापसी पर ब्रेक लगा दिया।
हर बार की तरह इस बार भी अपने घर ना पहुंच पाने की मायूसी शिक्षकों के चेहरे पर देखी गई लेकिन कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के कारण शिक्षकों ने मौन साध लिया। क्योंकि इसमें राज्य सरकार का कोई दोष नहीं था। योगी सरकार तो चाहती थी कि हर परिषदीय शिक्षक को अपने गृह जनपद में जाने का मौका मिले लेकिन दुनिया में अचानक आई इस महामारी के कारण योगी सरकार को अंतर्जनपदीय स्थानांतरण प्रक्रिया स्थगित करनी पड़ी । राज्य सरकार की मंशा शिक्षक हित की थी लेकिन कोरोना के इस तूफान ने सरकार और शिक्षकों दोनों के अरमानों पर पानी फेर दिया। अब जबकि पूरी सरकार और सरकार के सभी कर्मचारी कोरोना से जंग जीतने में जुटे हैं तो ऐसे में शिक्षकों के अंतर्जनपदीय स्थानांतरण कौन करे ?
योगी सरकार विवश है , वह चाहकर भी शिक्षकों के अंतर्जनपदीय स्थानांतरण की इस प्रक्रिया को गति नहीं दे पा रही है। लेकिन इन सबके बीच एक यक्ष प्रश्न यह है कि जब प्राइमरी स्कूल खुलेंगे तो बाहर से आने जाने वाले शिक्षक सोशल डिस्टेंसिंग मेंटेन कैसे कर पायेंगे ? और यदि बाहर से आने जाने वाले शिक्षकों ने सोशल डिस्टेंसिंग का पालन न किया तो स्कूलों में पढ़ने वाले गरीब तबके के इन नन्हे मुन्ने बच्चों का क्या होगा ?
गांव के गरीब आदमी के लिए दो वक्त की रोटी जुटाना कल भी कठिन था और आज भी कठिन है। ऐसे में यदि कोरोना जैसी महामारी बाहर से आने वाले शिक्षकों के जरिये स्कूलों में पढ़ने वाले नन्हे मुन्ने बच्चों में फैल गई तो फिर क्या होगा ? क्योंकि आज भी बड़ी तादात में परिषदीय स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षक तकरीबन 100 किलोमीटर की रोजाना यात्रा करते हैं। कई शिक्षक तो रोजाना 200 से 250 किलोमीटर तक की यात्रा करते हैं ? ऐसे में बाहर से आने जाने वाले शिक्षकों से सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने की अपेक्षा करना रेत पर महल बनाने के समान है। क्योंकि यह तभी संभव है जबकि एक चार पहिया वाहन पर केवल 3 शिक्षक ही यात्रा करें ?
लेकिन यदि एक चार पहिया वाहन पर 3 शिक्षक रोजाना यात्रा करेंगे तो उनका आधा वेतन तो रोजाना स्कूल आने जाने पर ही खर्च हो जायेगा ? फिर वह शिक्षक आधे वेतन में अपनी गुजर कैसे कर सकेगा ? और यदि वह बसों और ट्रेनों के जरिये सफर करता है तो स्वयं उसका , उसके परिवार का , उसके बच्चों का और सबसे बड़ी बात परिषदीय स्कूलों में लाखों की तादात में पढ़ने वाले उन सब गरीब बच्चों का जीवन गंभीर संकट में पड़ सकता है ? केंद्र सरकार और राज्य सरकार को इस विषय पर गंभीर मंथन करना चाहिए क्योंकि यह लाखों गरीब बच्चों के जीवन से जुड़ा हुआ सवाल है ?
गांव के परिषदीय स्कूलों में पढ़ने वाले गरीब बच्चों को कोरोना जैसी घातक महामारी से बचाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को निश्चय ही एक ठोस कार्य योजना बनानी होगी ताकि स्कूल खुलने पर नन्हे-मुन्ने बच्चों का जीवन संकट में न पड़ने पाये ? देश की अर्थव्यवस्था के लिए आज नहीं तो कल सरकार को लॉक डाउन खोलना ही होगा नहीं तो फिर देश की अर्थव्यवस्था की गाड़ी पटरी से उतर सकती है और हमारा देश दशकों पीछे जा सकता है। इसलिए सरकार को मेरा सुझाव है कि स्कूल खुलने से पहले ही सरकार शिक्षकों को उनके गृह जनपद भेजने की व्यवस्था करे ? इस एक निर्णय से परिषदीय स्कूलों में पढ़ने वाले लाखों नौनिहालों का जीवन संकट में पडने से बच सकता है। और जब अन्य जनपदों के शिक्षक अपने घर वापस पहुंच जायेंगे तो उनके घर से कोई भी स्कूल दस बीस किलोमीटर की एरिया से बाहर नहीं होगा। और दस बीस किलोमीटर की दूरी शिक्षक आराम से अपनी बाइक से कवर कर सकते हैं । इससे सोशल डिस्टेंसिंग का पालन भी आसान हो जायेगा और परिषदीय स्कूलों में पढ़ने वाले हमारे नन्हे मुन्ने बच्चों का जीवन भी संकट में पडने से बच सकेगा।