जन्म से पहले व्यवहार का प्रभाव

 


- अभिमन्यु ने चक्रव्यूह में घुसने की कला मां के गर्भ में रहते हुए सीखी थी । 


-खान-पान, स्वाद, आवाज़, ज़बान जैसी चीज़ें सीखने की बुनियाद हमारे अंदर तभी पड़ गई थीं, जब हम मां के पेट में पल रहे थे । 


- इसलिए माताओं को  नसीहतें मिलती हैं कि ज़्यादा मसालेदार चीज़ें न खाओ,  ये न खाओ, वो न पियो,  ऐसा न करो, वैसा न करो वरना अजन्मे  बच्चे पर बुरा असर पड़ेगा । 


-माता   जो कुछ भी खाती-पीती हैं, उसकी आदत उसके  अजन्मे  बच्चे  को भी पड़ जाती है । 


- गर्भ के दौरान लहसुन खाती है तो  उस के  बच्चे  को भी लहसुन ख़ूब पसंद आएगा । 


- जो महिलाएं  गाजर ख़ूब खाती थीं तो उनके बच्चों को भी पैदाइश के बाद अगर गाजर मिला बेबी फूड दिया गया, तो वो स्वाद ज़्यादा पसंद आया,  मतलब ये कि गाजर के स्वाद का चस्का उन्हें मां के पेट से ही लग गया था । 


-पैदा होने के फौरन बाद बच्चे मां का दूध इसीलिए आसानी से पीने लगते हैं क्योंकि उसके स्वाद से वो गर्भ में रूबरू हो चुके होते हैं । 


- मां  बच्चों की परवरिश करती है. उनकी रखवाली करती है. इसलिए बच्चों को उससे ज़्यादा अच्छी बातें कौन सिखा सकता है? खाने के मामले में ख़ास तौर से ये कहा जा सकता है,  दुनिया में आने पर कोई नुक़सानदेह चीज़ न अंदर चली जाए, इसीलिए क़ुदरत बच्चों को मां के पेट में ही सिखा देती है कि क्या चीज़ें उसके लिए सही होंगी । 


- गर्भ में  बच्चे उन आवाज़ों को ज़्यादा तवज्जो देते हैं जिनमें शब्द होते हैं,  जैसे कि दो लोगों की बातचीत, या गीत,  मां-बाप की आवाज़ को तो बच्चे सबसे ज़्यादा पहचानते हैं,  इसी से उनकी ज़बान सीखने की बुनियाद पड़ती है,  जो ज़बान मां-बाप बोलते हैं, उसे सीखना बच्चे के लिए सबसे ज़रूरी है ।  आख़िर पहला संवाद अपने मां-बाप से ही तो करते हैं । 


-अगर मांएं ख़ास तरह का संगीत सुनती हैं, तो पैदा होने पर बच्चे भी उस आवाज़ को आसानी से पहचान लेते है ।