संकल्प

 


संकल्प जो मन में  रिपीट करते है उसके कम्पन अंतरिक्ष में बिखरते हुये परिस्थितियो को अनुकूल बनाते है ।


वह  संकल्प शब्द भेदी  बाण  की तरह  सूक्ष्म जगत के उन संस्थानों से टकराता  है जिन्हे प्रभावित करना साधना  का लक्ष्य है ।


उच्चारित  होने के बाद संकल्प अंतःकरण के मर्म स्थलों की  गहराई  में उतरता  है और वहाँ से  उस शक्ति स्त्रोत की उर्जा से सम्पन्न होकर ऊपर आता  है ।


मर्म स्थल अर्थात संकल्प के पीछे प्यार, विरोध, दुख, उलाहना, दया, नफरत आदि की जो भावना  होती है, उस भावना  के  एनर्जी केन्द्र से शक्ति लेता है और जब बोलते है तो वैसा ही सुनने वाला अनुभव करता है ।


मशीने टूटती फूटती है, उनकी  सम्भाल के लिये कुशल कारीगर रखने पड़ते है । ज़रूरी ईंधन भी  देना पड़ता है ।


हमारा  शरीर एक मशीन है, जिस में अथाह शक्तियां  है, परंतु इस की देखभाल  का पता  नहीं, इसलिये  यह भी  हमे ज्ञान होना चाहिये कि  शरीर को कौन सा ईंधन देना है ।


शरीर में प्रचंड शक्तियां  है । इसका भौतिक उपयोग सभी जानते है, आहार वा पालन पोषण,  काम धँधा, परिवार की उत्पति आदि में कहां शक्ति खर्च करनी है सब जानते है ।


आत्मा में सूक्ष्म शक्तियों  है जो संकल्प से प्राप्त की जा सकती है, परंतु ये कोई बिरला ही जानता है । इसी की  खोज करनी है ।


सच्चे  ध्यान से सूक्ष्म शक्तियों के दरवाजे खुलते  हैंं । 


-जीवन मेंं जरा भी दुःख हैंं,  अतृप्ती हैंं,  परेशानी हैंं ,  संबंधो मेंं खटास हैंं तो समझो ध्यान की  शक्ति कम हो गई  हैंं और दूसरों से मन मेंं टकराते रहते हैंं । 


हर रोज जितने  लोग आप के संपर्क मेंं आते हैंं या बाजार आते जाते दिखाते हैंं या पड़ोसी हैंं  ।  मन मेंं उन्हे हर घंटे 5 बार जरूर कहो  आप स्नेही  हैंं स्नेही हैंं तो आप का ध्यान बहुत अच्छा लगेगा ।