कंकड़ या हीरा

 


एक राजा अपने महल के बगीचे में टहल रहा था।
उसकी नजर पिंटू नामक सफाई कर्मचारी पर पड़ी।
पिंटू को फटेहाल, पांव में जूता नहीं, चेहरा ऐसा कि कई दिनों का भूखा, ये देखकर राजा को दया आ गई।
राजमहल में इतना गरीब इंसान वो भी भूखा।
राजा ने सोचा इसकी आज ही गरीबी समाप्त कर दूं।
राजा ने पिंटू को पास बुलाया और हुक्म दिया कुछ देर पश्चात मुझे महल में मिलना।


पिंटू काँपता हुआ राजा के सामने हाजिर हुआ।
राजा ने कहा -
"तू बड़ा गरीब है। ये ले मैं तुझे ये हीरों से जड़ा सोने का थाल देता हूं ताकि तेरी गरीबी मिट जाए।"


पिंटू सोने का थाल पाकर बड़ा खुश हुआ।
राजा का धन्यवाद किया।
घर जाकर अपनी पत्नी को थाल दिया और कहा-
"आज राजा ने मेरे पर बड़ी कृपा की है ये बहुमूल्य और सुंदर थाल दिया है।"


पत्नी ने थाल को हाथ में पकड़ते हुए कहा -
"ये अच्छा हुआ रोज-रोज कूड़ा टूटी हुई टोकरी में उठा रही थी। बाँस की टोकरी थोड़े दिन चलती है। गीले कूड़े से टोकरी जल्दी टूट जाती है। अब ये पक्की टोकरी मिल गई है, कभी टूटेगी नहीं, कल से इसमें गंदगी ढोया करुंगी। कितनी सुंदर है सिर पर रखूंगी तो अच्छी भी लगूँगी।"


दूसरे दिन राजा का दिया हुआ थाल सिर पर उठाकर घर-घर में जाकर थाल में गंदगी इकट्ठी करके ढोने लगी।
यह क्रम कई दिनों तक चलता रहा।


अचानक राजा के सामने पिंटू आया।
राजा ने देखा पिंटू की वही अवस्था फटे-पुराने वस्त्र पांव में जूते नहीं।
राजा ने पिंटू को रोका और पूछा-
"पिंटू ! वो तुझे थाल दिया था उसका तूने क्या किया?"


पिंटू कांपते हुए बोला -
"महाराज, वो तो मेरी पत्नी के पास है। उसमें गंदगी घर - घर से इकट्ठी करके एक जगह फैंकती है। उसे मजबूत टोकरी मिल गई।"


ये सुनकर राजा को बहुत क्रोध आया और हुक्म दिया-
"नालायक, मूर्ख इतना कीमती थाल दिया था कि तेरी गरीबी खत्म हो जाएगी। तूने उसकी कीमत नहीं जानी और उसमें गंदगी डालता है। जाओ थाल वापस लाकर दो।"


पिंटू ने कहा -
"सत्य वचन। अभी लाता हूं।"


ये कहकर पिंटू घर गया और रोने लगा।
मेरी कितनी बड़ी गलती मैंने कद्र नहीं की।
पत्नी से थाल लिया।
अच्छी तरह धोया और राजा को वापस दिया। पिंटू गरीब का गरीब रहा।


मेरे दोस्तो
ये कहानी कहीं हम सबके साथ तो नही घट रही। 
परम् पिता परमात्मा ने ये शरीर रूपी कीमती थाल दिया। जिसमें हाथ, पांव, आँखें, कान, नाक, मुंह, जुबान और ना जाने कितने कीमती हीरे मोती जड़े हैं।
परंतु इंसान इसमें तृष्णाओं, इच्छाओं, कामनाओं, वैर, द्वेष, जलन, नफरत, और अभिमान रूपी गंदगी को ढोए जा रहा है - ढोए जा रहा है।


इन्सान ने इस अनमोल मानुष देह की कद्र नहीं जानी। 
अभी भी वक्त है... महापुरुषो की बातें समझा रहे है....
क्यों गाफिल होके सोया, 
आंख मूंद के हे इन्सान। 
जाग कर अपना काम निपटा ले, 
जिस कारण आया बीच जहान।।