इच्छा

 


चाहना और इच्छा करना दोनों अलग अलग है । 


केवल चाहना  है,  शेखचिल्ली की तरह ख्वाब देखते रहना ।  करना धरना कुछ नहीं ।  इस से बल नहीं बनता । 


इच्छा अर्थात लगन अर्थात एकाग्रता और मेहनत से किसी काम  के पीछे  जी जान  से जुट जाना और हर सम्भव प्रयत्न  करना तब  इच्छाएं  पूर्ण होती है । 


तीव्र इच्छा  के साथ जो जो भावना की जाती  है उसकी बड़ी शक्तिशाली विद्युत लहरें उत्पन होती है । 


यह लहरें ईथर तत्व में दौड़ पड़ती है और चाही हुई  बात को पूरा करने के लिये परिस्थितयां  जुटाने  में लग जाती  है । 


जिस वस्तु या कार्य  के लिये तीव्र इच्छा की जाती  है वे विद्युत लहरें नियत  स्थान पर  पहुंच कर   अनुकूलता पैदा करने लगती है । 


तीव्र इच्छा में दूसरों को प्रभावित  करने की पर्याप्त शक्ति होती है । 


भावना से तो भगवान भी प्रकट हो जाते  है  सम्मोहन की शक्ति  तो क्या मुश्किल है । 


शीशे द्वारा  जब      थोड़ी सी परिधि पर सूर्य की किरणें पड़ती है तो अग्नि उत्पन हो जाती  है । 


शरीर और मन की सारी शक्तियों को एक स्थान पर फेंका  जाये  तो उसका व्यापक प्रभाव  होगा । 


मानसिक  शक्ति को तीव्र इच्छा द्वारा  एकाग्र कर के किसी एक व्यक्ति पर फेंका  जाये  तो यह गहरा असर दिखाता  है । 


छोटी आग से कम गर्माहट मिलती है, उसी तरह कमजोर इच्छा से कमजोर परिणाम मिलते हैं।


मनुष्य की उपलब्धियों की सीमा उसकी इच्छा शक्ति पर निर्भर है।


 इच्छा को शक्ति या देवी का रूप दिया गया है। 


वह  इच्छा  जिसकी ज्योति  कभी मंद न हो, उसे दृढ़ इच्छाशक्ति कहते हैं।


इच्छाशक्ति  ही आपको मुसीबतों से लड़ने में मदद करती है।


हम अपनी सोच के अनुसार चीजों को पा सकते हैं। यह सब किसी जादू का नहीं बल्कि श्रेष्ठ और शक्तिशाली संकल्प शक्ति का ही कमाल होता है। 


मनुष्य की इच्छाशक्ति और बौद्धिक संतुलन  से प्रचुर  शक्ति पैदा होती हैं जिसके बल से  विकट-से-विकट परिस्थिति का भी सामना किया जा सकता है।


इच्‍छाशक्ति एक प्रतिक्रिया है, जो मस्तिष्‍क और शरीर दोनों से आती है।  यह स्थान भृकुटि  अर्थात माथे के पीछे मस्तिष्क का खंड  है ।  यहीं से इच्छाएं उत्पन्न होती हैं और मन दृढ़-संकल्पित होता है।


 मुझे प्यार  का सागर  बनना है यह दृढ इच्छा रखो आप  में सम्मोहन की शक्ति आने लगेगी ।