छठी इंद्रिय

 


-कपाल के नीचे प्रत्येक मनुष्य के  मुंह  के अंदर तालू में एक छोटा  सा छेद है ।  इस छेद को ब्रह्मरंध्र  कहते  है । 


-यही से एक  नाड़ी  जिसे सुषमना कहते है,  रीढ़ की हड्डी से होती हुए आखिरी शक्ति केंद्र मूल आधार तक अर्थात रीढ़ के आखिरी मनके तक जाती  है । 


-यहीं  से इडा और पिंगला नाम  की  दो नाड़ीया और भी   रीढ़ की हड्डी से होती हुई  आखिरी  मनके तक जाती  है । 


- बायें तरफ के नाक से  जो सांस  लेते है उसे इडा नाड़ी  कहते  है । 


-दायें  तरफ के  नाक से जो  सांस  लेते है उसे पिंगला नाड़ी  कहते  है । 


-सुषमना नाड़ी  इन  दोनों के बीच में होती है । 


-एक नाक  से बदल कर जब दूसरे  नाक  से सांस  लेने लगते है तो थोड़ी देर दोनों नाक  से सांस  चलने लगता  है ।  


-जब दोनों नाक  से सांस  ले रहे  होते हैं  तो उस समय सुषमना नाड़ी  एक्टिव रहती है ।  


-यह सुषमना नाड़ी सातों चक्रों और छटी  इंद्रिय का केंद्र मानी  जाती  है । यही से सुषमना नाड़ी  सहस्त्रार चक्र से भी  जुड़ी है ।  सहस्त्रार चक्र एक विशाल  चक्र है जो ब्रह्मांड से जुड़ा हुआ है । 


-सुषमना नाड़ी  के जागृत होने  से छठी इंद्रिय जागृत हो जाती  है । 


-भक्ति मार्ग  में प्राणायाम के अभ्यास से छटी  इंद्रिय को जागृत करते है । 


-परंतु हम जितना जितना ध्यान भ्रुकुटि में ज्योति पर लगाते  है उतना ही छठी इंद्रिय अपने आप जागृत होती जाती  है । 


-दोनों नाकों के बीचों बीच नाक के   एक इंच आगे अगर बिंदु पर ध्यान लगाते है तब भी छठी इंद्रिय जागृत होती रहती है । 


-अगर  मुख के अंदर तालू में जो छोटा सा छेद है वहां  बिंदु प्रकाश  को देखते रहे  तब भी छठी इंद्रिय जल्दी जागृत हो जाती  है । 


-कोई भी ध्यान या साधना या अच्छी चीजों पर एकाग्रता करते है  तो  उसके प्रभाव  से छठी इन्द्रिय  अनजाने में  जागृत होती रहती है । 


-विश्व का प्रत्येक व्यक्ति कुछ ना कुछ मात्रा  में अंजाने में ही अपनी  छठी इंद्रिय का प्रयोग करता रहता है ।