अमृतवेला योग

 


आज अमृतवेला  के पावन क्षणों में , मैं चमकती हुई आत्मा  यह अनुभव कर रही हूं  कि  मेरा तो एक शिव बाबा दूसरा न कोई "--- सबका मालिक एक  परमपिता शिव परमात्मा है -- हम सभी उनकी संतान हैं--- जब तक हम सभी इस शाश्वत  सत्य को स्वीकार नहीं  करेंगे तब तक विश्व  में शान्ति स्थापन नही होगी।


मैं आत्मा  एक पिता परमात्मा की छत्रछाया में  दिव्यता का  अनुभव कर रही हूं --  दिव्यता के चमकते हुए प्रकाश के अंदर मैं आत्मा अपने को स्थित करते हुए  गहरी शांति का अनुभव करने लगी हूं  ----असीम शांति --- शांति की इस अवस्था में शांति के इस  वातावरण  में बैठी मैं आत्मा उड़  चलती हूं  अपने असली घर की ओर-- एकदम न्यारी  अवस्था का अनुभव हो रहा है--- देह के सारे संबंध, देह के सारे आकर्षण, देह के सारे कर्तव्य और  स्वयं की देह भी नीचे छूट गई है।


मैं आजाद पंछी आत्मा  ऊपर की ओर उड़ते हुए ,अत्यंत हल्का अनुभव करते हुए ,अपने परमधाम में पहुंची हूँ--- परमधाम  में , मै आत्मा बाबा की किरणों के  नीचे  बैठ जाती हूं ---- शांति से भरी किरणें   मुझ आत्मा में समाती जा रही हैं --- मेरा रोम रोम शांति की शक्ति से भरती जा रही  है---साइलेन्स की असीम शक्ति मुझ आत्मा में पूरी तरह से समा चुकी हैं ।


मैं आत्मा विश्व  कल्याणकारी की स्थिति में स्थित  हो चुकी हूँ  ---मैं आत्मा विश्व कल्याणकारी आत्मा हूं --- परमधाम से नीचे अपने शरीर में आकर न्यारी और प्यारी अवस्था का अनुभव करती मै आत्मा  अपना  विश्व  कल्याणकारी  का पार्ट  सफलता पूर्वक बजा रही हूँ---सब दुखी अशांत आत्माओं  को सकाश दे रही हूँ ।
यही  मेरे  इस  अंतिम जीवन के , अंत समय का अंतिम कर्तव्य  है ।