कई लोग काम को प्रेम समझने की भूल करते हैं जबकि इतिहास गवाह है कि काम को पूजा नहीं जाता ! कभी रोमियो - जुलियट का मन्दिर नहीं देखा होगा परंतु राधा-कृष्ण और राम सीता के प्रेम के भजन व पूजन से आज भी आँखे नम होती हैं ! पवित्र प्रेम आज भी पूजनीय है फ़िर वह चाहे राधा का कृष्ण से हो,राम का सीता से हो या शिव का पार्वती से! पूजन सदा पवित्र का ही होता है अपवित्र का नहीं! 'काम' अपवित्र है क्योंकि इसमें देह सम्मिलित है जबकि प्रेम आत्मा को आत्मा से जोड़ता है अतः कोई भी भाव जिसमें देहभान का अंशमात्र न हो वह पवित्र है इसको ही संसार नमन करता है जबकि 'काम' एक विकार है इसलिए इसका गायन नहीं है इससे मनुष्य की शारिरीक व मानसिक क्षति होती है जो मनुष्य जीवन में और कई प्रकार की समस्याओं को आमंत्रित करती है! इतिहास बताता है कि बड़े बड़े राजा महाराजाओं का पतन इसी विकार के कारण हुआ! आज समाज में हर प्रकार की अनैतिकता का मूल कारण भी यही विकार है क्योंकि इससे सबसे अधिक आत्मिक उर्जा का पतन होता है बुद्धि व विवेक नष्ट होता है तथा निर्णय शक्ति कम होती है! बड़े बड़े ऋषिमुनियों की उच्च सिद्धियों को भी इसी विकार के कारण खोते हुए पाया! हर मनुष्य आत्मा परमात्मा का बच्चा है और जैसा पिता वैसा ही पुत्र होता है न?_
_💫 Its said that " god created man in his image " but do we find even a glimps of his image in us today ? No, its because we have forgotten that our true nature is pure!_
_📯 पवित्रता हर आत्मा का मूल स्वभाव है पर आज उसका अंशमात्र भी हम में नहीं दिखता, क्यों? क्योंकि आज हम में विकार व्याप्त हैं और उन विकारों में से सबसे प्रमुख है ' काम ' ! आज छोटे-छोटे बच्चे भी इसी विकार से ग्रस्त पाए जाते हैं जिससे उनकी मासूमियत लुप्त है आज बच्चों को भगवान का स्वरूप नहीं कह सकते! केवल कामुकता भरे कर्म करना ही काम विकार से ग्रस्त होना नहीं है, देहभान से भरे संकल्प करना भी ' काम 'ही है काम सबसे पहले सन्कप मे ही उपजता है! 'काम' ही संसारिक कामनाओं का मूल बीज है जिसकी होड़ में मनुष्य की आज यह हालत हो गई है !_
_📯 अतः संकल्पों की शुद्धता अनिवार्य है हमारे संकल्प ईश्वरीय ज्ञान से युक्त होने चाहिए ! काम विकार के संकल्प मात्र से आत्मा की पवित्रता क्षीण होने लगती है! इसलिए इसे पांच विकारों में सबसे पहले रखा गया है•••काम,क्रोध,लोभ,मोह,अहंकार! आत्मिक पवित्रता के क्षीण होने के कारण ' काम ' कलयुग में केवल प्रजनन की प्राकृतिक विधि है, मनुष्य जीवन में इसका इससे अधिक कोई महत्व नहीं ! जबकि मनुष्य में जीवन 'प्रेम' का अस्तित्व व महत्व अनादि है ! मनुष्य जीवन प्रेम के बिना नीरस है! प्रेम आत्मिक गुणों में से एक है जिसके बिना आत्मा का सम्पूर्ण स्वास्थ सम्भव नहीं है प्रेम एक सुन्दर भाव है इसमें देह का कोई स्थान नहीं! अतः प्रेम को कामुकता से मत जोड़ें क्योंकि कामुकता आत्मा को कमज़ोर करती है जबकि प्रेम आत्मा को सशक्त करता है जो भाव आत्मा को कमज़ोर करे वह विकार है और जो सशक्त वह गुण कहलाता है अतः काम एक विकार है और प्रेम एक गुण! हमें अपने और समस्त मनुष्य समाज की उन्नति के लिए अवगुणों का त्याग करना चाहिए, तो आओ आज से केवल सत्य प्रेम को अनुभव करें फिर वह चाहे जीवन साथी से हो, घर-परिवार से, जीव -जन्तुयों से, प्रकृति से या इस धरा के मालिक परमपिता परमात्मा से सच्चा प्रेम करके अपना जीवन सफ़ल बनाएं !_