प्रेम और जल

 


-प्रेम के विचारो  का पानी पर सब से जल्दी प्रभाव पड़ता  है । 


- यही कारण है कि  ऋषि मुनि अपने सामने जल रखते थे । उसे अभिमंत्रित कर के  मनचाहा कार्य करते थे । हर अशुद्वि   को दूर करने लिये जल छिड़कते  थे ।


- आज भी कुछ  धर्मों में अमृत पिलाने की बहुत महिमा  है ।  हर  वीरवार को प्यारे शिव बाबा को  सामूहिक भोग लगाते है तथा  अमृत बाँटते है ।


-घर  में अशुद्वि  दूर करने के लिये विद्वान लोग  जल  का ही प्रयोग करते है । 


-सारे खाद्य  पदार्थ जल द्वारा ही पैदा  होते है । हरेक व्यक्ति दिन में  अनेको  बार  जल का प्रयोग करता है ।


-जल से हम कपड़े धोते  है, नहाते  है जिस से हम तरोताजा रहते है ।


-हमारे शरीर में 70% जल है तथा  हमारे दिमाग में 80 % जल है ।


-पानी पर प्रेम व घृणा अर्थात हमारे सभी  विचारो का तुरंत असर होता है ।


-कोशिकाओं का ज्यादातर हिस्सा  पानी से बना है ।


-जब हमारे मन में प्रेम होता है तो यह शरीर की कोशिकाओं पर असर डालता है ।


-प्रेम से आदर्श स्वास्थ्य रहता है । बीमारी में भी श्रेष्ट भावनायें रखो । बुरी भवनाओ  से रोग कभी ठीक नही  होगा ।


-शुध्द भवनाओ से पानी शुध्द होता है जो भी उस जल को पियेगा   उसकी कोशिकाय  शक्तिशाली बनेगी ।


-  भोजन को देख कर या खाने  से पहले उसे प्रेम दो  या परमात्मा को याद करो तो वह भोजन क्योंकि उस में पानी होता है, पानी में परिवर्तन होता है तथा  वह शक्तिशाली बन जाता है ।


-यही कारण है  काफी परिवारों में भोजन को भोग लगाने या थोड़ी देर   प्रार्थना  करने का रिवाज़ है । भोजन से पहले भगवान  को याद कर के जल छिड़कते  है ।


-जब भी आप पानी को देखते हो उसे प्यार दे ।  व्यक्ति या वस्तु देखते है उसे भी  प्यार दो । इस तरह जब आप बाहर प्यार देते है तो हमारे खून में जो जल है वह भी प्रभावित होता है और शक्तिशाली बनता है । जिससे रोगॊ से लड़ने की शक्ति बढ़ती है ।


-जब भी आप चाय, दुध व और कोई तरल पदार्थ पीते है या देखते है तो उसे प्यार दे। इस से बहुत जल्दी ठीक होगे.


-दिमाग की कोई भी बीमारी गाँठ आदि सब में पानी की मात्रा ज्यादा लेंवे । प्यार देने से बाहर का जल और अन्दर का जल रोगाणु रहित होता है जिस से हम जल्दी ठीक हो जाते है ।


-बाहर कोई भी स्थूल वस्तु, बिस्तर, मेज,कुर्सी, बरतन, कंघी, शीश, साइकल, स्कूटर, कार बँगला जो कुछ भी देखते है मन में कहो मै तुम्हे पसंद करता  हूँ, तुम्हे स्नेह करता है । आप के अन्दर जो जल है  वह यह सुन रहा है और बदल रहा है जिस से हम सदा नीरोगी रहेंगे  ।


-किसी को हम डाँटते है या कोई हमे डाँटता है तो हमारे अन्दर का जल प्रभावित होता है जिस से हम रोगी वा नीरोगी बनते है । इसलिये मुझे  किसी को भी डाँटना फटकारना नही है । मन में भी ऐसा नही करना है ।


-अगर हम अपने मन में कोई हीन भावना,  दुख की  भावना या अभाव या निराशा  का विचार  रखते है तो हमारे खून में जो जल है वह प्रभावित होता है जो कि  बीमारी का कारण बनता है । इसलिये चाहे कुछ  भी हो जाये हमे सदा शुध्द विचार  रखने है।