ईर्ष्या हमें कैसे जलाती है?

 



एक महात्मा थे। एक बार प्रवचन में उन्होंने अपने शिष्यों से कहा की कल आप सब आलू जितने बड़े पत्थर लेके आना ओर उस पर आप जिससे ईर्ष्या द्वेष करते हे उसका नाम लिख के आना। सब बड़े परेशान हो गये की आख़िर महात्मा ने एसा क्यू कहा। दूसरे दिन सभी आलू जितने बड़े पत्थर लेके आए। कोई 4 लेके आए तो कोई 8. सबने उनका नाम लिखा उस पर जिससे वह ईर्ष्या नफ़रत करते थे। फिर महात्मा ने कहा इसे आप एक जोले में डालकर दिन भर अपने कंधे पे लेके घूमेंगे। सब बड़े परेशान हो गए। क्यूँकि किसी के पास 4 तो किसी के पास 8 तो किसिके पास 12 थे। सारे दिन लेके घूमने के बाद सब बहोत थक गए थे। महात्मा ने कहा क्यू क्या हुआ ये तुमने ही अपने लिए चुने हे। इसपे तुमने ही अपने दुश्मन का नाम लिखा हे जिससे तुम ईर्ष्या ओर नफ़रत करते हो। वो बोले की हमें नहि पता था की आप इसे 24 hours लेके घूमने के लिए बोलेंगे।
महात्मा ने कहा एसेही तुम अपने मन पर भी सालों से ईर्ष्या ओर नफ़रत का बोज सबके प्रति लिए घूमते हो तो सोचो तुम्हारा मन कितना बोज सहेता हे। जेसे ही तुमने ये पत्थर मेरे सामने रखे ओर हल्का महसूस कर रहे हो वेसे ही अपनेमन से ईर्ष्या ओर नफ़रत के पत्थर का बोज उतार दो तो तुम्हारी ज़िंदगी फूल जेसी हल्की ओर सुगंधित हो जाएगी।
ईर्ष्या ओर नफ़रत से तुम बहोत सी बीमारियों का शिकार होते हो ओर तुम्हारा मन सदा ही अशांत ओर बेचेंन रहेता हे। इससे अपनी रक्षा करने के लिए हमें सभी से दया भाव ओर स्नेह रखना चाहिए। जितना मन को हल्का रखेंगे उतना ही हमाराजीवन सरल ओर सफल होगा।