किसी गाँव में एक ताले वाले की दुकान थी। ताले वाला रोजाना अनेकों चाबियाँ बनाया करता था। ताले वाले की दुकान में एक हथौड़ा भी था| वो हथौड़ा रोज देखा करता कि ये चाबी इतने मजबूत ताले को भी कितनी आसानी से खोल देती है।
एक दिन हथौड़े ने चाबी से पूछा कि मैं तुमसे ज्यादा शक्तिशाली हूँ, मेरे अंदर लोहा भी तुमसे ज्यादा है और आकार में भी तुमसे बड़ा हूँ लेकिन फिर भी मुझे ताला तोड़ने में बहुत समय लगता है और तुम इतनी छोटी हो फिर भी इतनी आसानी से मजबूत ताला कैसे खोल देती हो।
चाबी ने मुस्कुरा के ताले से कहा कि तुम ताले पर ऊपर से प्रहार करते हो और उसे तोड़ने की कोशिश करते हो लेकिन मैं ताले के अंदर तक जाती हूँ, राइट साइड घूमती हूं और ताला आसानी से खुल जाता है, जो सहज भी है और सही तरीका भी। और तुम ऊपर से काम करने की कोशिश करते हो जो रॉंग(wrong) साइड भी है और गलत तरीका। इसलिए तुम्हे इतनी परेशानी झेलनी पड़ती है।
ठीक ऐसा ही हालत है मानव जीवन का। जीवन में समस्याएं बहुत सारी आती है। जरुरी है समाधान हासिल करना। साधारण मानव हथोड़ा बन कर के समस्यायों को तोड़ने की कोशिश करते रहते हैं और परेशान हो जाते हैं। लेकिन जो अपने अंतर्जगत से जुड़े हुए हैं वह बड़े ही कुशलता पूर्वक अपने बुद्धि को चाबी की तरह राईट साइड घुमा कर उस समस्यारूपी ताला को खोल लेते हैं अर्थात समाधान कर लेते हैं।
किसी भी समस्या का समाधान बाहर नहीं बल्कि अपने ही अंदर है। सिर्फ जरूरत है अन्तर्मुखी हो उस समस्यायों को अवलोकन करने का। क्योंकि आजकल बाहरी दुनिया का चमक दमक इतनी बढ़ गयी है, इतना ज्यादा बाहरी आकर्षण है जो मानव अपने अंतर्जगत से कनेक्टेड हो ही नही पाते हैं और किसी भी समस्या आने पर उनके मन में हजारों सवाल खड़े हो जाते हैं। ऐसा क्यों...? वैसा क्यों...? के चक्रव्यू में फँस कर परेशान होते रहते हैं। अपने अंतर्जगत के मालिक अर्थात आत्मा के साथ जुड़े हुए न होने के कारण उसमे आत्मविशास की कमी होती है और वे परनिर्भर होते हैं। और जीबन मानव को छोटे छोटे से लेकर बड़े बड़े समस्यायों में उलझा देती है।
हथोड़ा है स्थूल व मोटे बुद्धि के निशानी और चाबी है सूक्ष्म व दिव्य बुद्धि की। जबतक हम खुद को देह व शरीर समझ कर जिएंगे तबतक बुद्धि हथोड़े जैसा काम करेगा और जब हम अपने आत्मा से जुड़ जाएंगे तब से बुद्धि चाबी की तरह काम करने लगेगी और जीवन अति सहज, सरल और हर पल आनन्ददायी बन जायेगा । हमारे अंतर्जगत में ही हमारा सत्य स्वरूप छिपा है। जब तक हम उस सत्य से रूबरू नहीं होंगे तबतक ईश्वर के नजदीक पहँच ही नही सकेंगे। सिर्फ खेल खेल में मूल्यवान जीवन को गवा देंगे। समस्यायों के हाथों ही हम दम तोड़ देंगे और उसी के तले एक दिन जीबन दफन हो जायेगी। हर समस्या का समाधान एक परमात्मा और उनके दिव्य ज्ञान में है लेकिन बाहरी तल पर उनसे जुड़ने से उनकी शक्तियॉ हासिल नही होती व उन्हें महसूस नही किया जा सकता। अपने आत्मा से जुड़ कर जब हम परमात्मा से जुड़ते हैं तो उनकी अनन्त शक्ति और परम् निश्चिंतता का एहसास हमे होने लगता है और हर पहाड़ रूपी समस्या राई और राई से फिर रुईबन जाती है। यही है हर राजयोगी जीवन का पल पल का अनुभव।