-जिंदगी में कभी न कभी, किसी न किसी ने आप को बुरा-भला कहा होगा और आपने बदला लेने की सोची होगी, किसी ने आपको नुक़सान पहुंचाया तो आपके मन में बदले का ख़याल आया होगा ।
-बदले की भावना तब से है, जब से हम इस धरती पर रह रहे हैं, विश्व के सभी देश बदले की कहानियों से भरे पड़े है ।
-ऐसे लोग बिरले ही मिलेंगे, जो अपने साथ गलत होने पर बदले की भावना से न भर गए हों, बदले की भावना जोर मारते ही ये लगता है कि बदला लेने से आपको जो नुक़सान हुआ है, उसकी भरपाई हो जाएगी ।
- बदले की भावना हर समाज में देखने को मिलती है, लोग ग़ुस्से से पागल होकर दूसरों को नुक़सान पहुंचाने का ख़याल अपने मन में लाते हैं ।
- दुनिया में बीस प्रतिशत हत्याओं के पीछे और स्कूलों में होने वाली गोलीबारी में साठ प्रति शत के पीछे बदले की भावना होती है । कई बार हमारी राजनीति पर भी बदले की भावना का सीधा असर देखने को मिलता है ।
-बदले की भावना मन में आने के पीछे शराब, अपमान और अक्सर ख़ुदग़र्ज़ी बड़ी वजह होती है ।
- किसी का बर्ताव बुरा लगने पर भी लोग हिंसक हो उठते हैं, बेइज़्ज़ती होने की सूरत में बदले की भावना प्रबल हो जाती है ।
- जब किसी आदमी को समाज से अलग-थलग कर दिया जाता है, अपमानित किया जाता है, तो वह बहुत तकलीफ़ महसूस करता है ।
- जब कोई आपको ख़ारिज करता है, तो पहले तो आपको तकलीफ़ होती है, लेकिन जैसे ही आप इस बेइज़्ज़ती का बदला लेने का मौक़ा पाते हैं, तो मनुष्य को अजीब सा सकून मिलता है । इसीलिए तो कहा जाता है कि बदले का स्वाद बेहद मीठा होता है ।
- बदले की भावना इंसान में स्वत: ही जन्म लेती है। बदला लेकर इंसान स्वयं को सामने वाले के बराबर समझता है।
- इंसान भले ही अच्छे के बदले कभी अच्छा करे न करे लेकिन बुरे का बदला लेने में, जवाब देने में, कभी नहीं चूकता क्योंकि चुप रहने में उसे अपनी हार लगती है। इंसान सदा बदले की अग्नि में जलता है।
- इंसान अपना आधा जीवन उन लोगों से बदला लेने में, षड्यंत्र रचने में लगा देता है जिसने उसे दुख पहुंचाया था। वह सोचता है बदला लेने से हिसाब बराबर हो जाएगा।
-जिससे हम बदला लेंगे वह पुन: अपनी हार का, अपमान का बदला लेगा।
-फिर उससे ज्यादा हम उसके उत्तर में बदला लेने की कोशिश करेंगे।
- धीरे-धीरे फिर यही बदले की भावना हमारे चारों ओर एक नर्क निर्मित कर देती है और हम बदले की आग में भस्म हो जाते हैं और चीजें बनने की बजाय बिगडऩे लगती हैं।
-जो परिवर्तन हमें जगा सकता था, हमें संभाल सकता था वह हमें गर्त में ले जाता है और हम लडख़ड़ा जाते हैं। इसलिए छोड़ो बदले की भावना को बस स्वयं को ही परिवर्तित करो ताकि कुछ रुपांतरित हो सके।
-दो भाइयों का झगड़ा हो जाये और उन में एक भाई हार मान ले तो सिर्फ एक भाई को नुकसान होगा दूसरे को फ़ायदा होगा ।
-अगर दोनों युद्ध पर उतर आयें तो दोनों को आर्थिक नुकसान होगा और बीस लोग फायदा उठायेगे अर्थात पुलिस और न्यायलय के लोग उनके पैसे फीस और दूसरे खर्चों के रूप में हड़प जायेगे ।
-अक्सर कोई आप से बदसलूकी करता है, तिरस्कार करता, बुरा भला कहता है, आप को आगे नहीं बढ़ने देता है, सबको आप के प्रति भड़का देता है, टोंट मारता है या कोई भी ऐसा वैसा व्यवहार आप के साथ करता है जिसे आप ठीक नहीं समझते है । यह लोग घर या कार्यस्थल पर होते है । आप की मजबूरी है रहना वही है । मन में विद्रोह उठता है । कुछ कर नहीं सकते, कोई सही गाइड नहीं करता । समझ नहीं आता क्या करूं ? बदले की भावना से कैसे बचू ?
-कोई भी विघ्न आये तुरंत बुक्स पढ़ा करो । तब तक पढ़ते रहो जब तक आप की समस्या का सही हल ना मिल जाये ।
-अमुक व्यवहार से क्या सीख मिली सिर्फ वह चीज सोचा करो । आगे ऐसा क्या करूं जो ऐसी समस्या फिर ना आये ।
-उनके प्रति कल्याण का भाव रखो, आप अपना रास्ता बदल लो । वह किसी और से टकरायेगा और सेर को सवा सेर एक दिन मिल जयेगा । कुछ चीजों का इलाज समय करता है, कुछ चीजों का इलाज भगवान करता है । कुछ चीजों का इलाज सरकार करती है । कुछ चीजों का इलाज व्यक्ति की संतान करती है । आप उस समय सोचा करो मेरे बस मेंं क्या है । आप के बस में है अपने को अच्छे कार्यों में लगाना ।
- पते की एक बात याद रखना क़ि उनका आर्थिक नुकसान नहीं करना । कभी नौबत आये तो कानूनी करवाई कर सकते है । अगर आप पर निर्भर है तो उचित सहयोग देना है । कभी भी उन्हें गलत राय मत देना ।
-एक आदमी/ औरत बुरी हो सकती है । सारी दुनिया नहीं । आप अपना मन उन व्यक्तियों में लगा कर रखो जो आप को पुचकारते है, सिर पर हाथ फेरते है और आप का निस्वार्थ सहयोग करते है ।