बी के सरोज रनिया कानपुर देहात
💎 वास्तव मे यह संस्कार परिवर्तन मे क्रांति लाने का ही पर्व 'संक्रांति' है। भारतीय संस्कृति में मकर संक्रान्ति का पर्व अनेक आध्यात्मिक रहस्य से परिपूर्ण है। यह सुसंयोग ही है कि लगभग इसी समय भारत के विभिन्न प्रान्तों में पोंगल, ओणम, लोहड़ी आदि विभिन्न नामों से खुशियों का पर्व मनाया जाता है। इन सभी पर्वो में एकरूपता यह है कि उक्त सारे ही पर्व नयी फसल के आने के समय, आम जनमानस की खुशी को दर्शाते हुए बड़े उत्सव पूर्वक मनाये जाते हैं। और इस अवसर पर सभी मिलकर नाचते, गाते और झूमते हैं। एक- दूसरे को बधाइयाँ देते हैं और तरह-तरह के पकवान बनाते तथा खाते हैं। इस खुशी के माहौल में लोग आपस के गिले-शिकवे भुलाकर एक दूसरे को गले लगाते हैं।
🌠 जिस प्रकार भक्ति मार्ग के पुरुषोत्तम मास मे स्नान कर तिल खाना, पतंग उड़ाना, आग जलाना, दान-पुण्य आदि करने का महत्व होता है, उसी प्रकार पुरुषोत्तम संगमयुग मे...
*💦1. स्नान करना -*
ब्रह्म मुहूर्त मे उठ स्नान ज्ञान स्नान करने का यादगार है। जिसमें आत्मा ज्ञान स्नान करके बुराइयों का दान करने से, पुण्य का खाता जमा करने वाली हर आत्मा उत्तम पुरुष बनती है।
*🍿2. तिल खाना -*
तिल खाना- खिलाना वास्तव में छोटी चीज़ की तुलना तिल से की गयी है। आत्मा भी अति सूक्ष्म है। अर्थात तिल आत्म स्वरूप में टिकने का यादगार है।
*🧆3. तिल के लड्डू खाना -*
जैसे तिल के लड्डू छोटे तिल के दानों से मिलकर बनते हैं, उसी प्रकार हमें तिल समान सभी आत्माओं के साथ एक जुट होकर एकता मे रहना है और संगठन को मज़बूत बनाना है। तिल को अलग खाओ तो कड़वा महसूस होता है। अर्थात अकेले मे भारीपन का अनुभव होता है।
*🍲4. चुड़ा गुड़ खाना -*
चुड़ा- गुड़ खाने व खिलाने का भाव यह है किसी के साथ वैर-विरोध और बीती हुई कड़वी बातों है तो उसे भुलाकर, संबंधों को मधुर और मिठास बनाना है।
कहावत भी है- गुड़ ना दो, तो गुड़ जैसी मीठी बात तो करो। जब हमारे अंदर से बुरे संस्कार मिट जाते हैं और हमारा व्यवहार मधुर बन जाता है, तो स्वाभाविक रूप से खुशियाँ लौट आती हैं। हम झूमने-नाचने लगते हैं। अर्थात विभिन्न संस्कारों वाले लोगों के साथ संस्कार मिलाना आ जाता है।
*🍛5. खिचड़ी और तिल का दान -*
इस दिन खिचड़ी और तिल का दान करते हैं, इसका भाव यह है कि मनुष्य के संस्कारों मे आसुरियता की मिलावट हो चुकी है, अर्थात उसके संस्कार खिचड़ी हो चुके हैं, जिन्हें परिवर्तन करके अब दिव्य संस्कार धारण करने हैं। प्रत्येक मनुष्य को ईर्ष्या-द्वेष आदि संस्कारों को छोडकर संस्कारों का मिलन इस प्रकार करना है, जिस प्रकार खिचड़ी मिलकर एक हो जाती है।
वर्तमान संगमयुग में परमात्मा की आज्ञा है कि तिल समान अपनी सूक्ष्म से सूक्ष्म बुराइयों को भी दान करो। छोटी से छोटी कमज़ोरियो का दान देने से ही भाग्य बनेगा।
*🎐6. पतंग उड़ाना -*
आत्मा हल्की हो तो उड़ने लगती है; देहभान वाला उड़ नहीं सकता है। जबकि आत्माभिमानी अपनी डोर भगवान को देकर तीनों लोकों की सैर कर सकता है।
*🔥7. आग जलाना -*
हमारी संस्कृति में हर शुभ कर्म का साक्षी अग्नि को माना गया है। अग्नि सदा पवित्र मानी जाती है। यह शरीर भी आत्मा निकल जाने के पश्चात अंततः अग्नि को समर्पित किया जाता है। अग्नि मे डालने से चीज़ें पूरी तरह बदल जाती है। परंतु एक योग अग्नि ऐसा भी है, जिसके द्वारा न केवल उनके जन्म-जन्म के विकर्म भस्म होते हैं, बल्कि उनकी याद की किरणें समस्त विश्व में फैल कर शांति, पवित्रता, आनंद, प्रेम, शक्ति की तरंगे फैलाती हैं।
यदि इस पर्व को निम्नलिखित विधि द्वारा मनाए तो न केवल हमें सच्चे सुख-शांति की प्राप्ति होगी बल्कि आत्मा पापों से मुक्त हो गई, ऐसा अनुभव करेगें और परमात्म दुआओं के भी अधिकारी बन जायेगे।