राजयोग और कुछ नहीं एक निरंतर बनी रहने वाली स्थायी शुध्द मानसिक तरंग है ।
वे लोग जो भाग दौड़ भरी जिंदगी जीते है उन्हें बेचैन व अस्थिर मन की आदत हो जाती है ।
-एक मिनिट मन में कोई एक समस्या होती है, दूसरे ही मिनिट वातावरण की कोई दूसरी समस्या हमारे मन में होती है, अगले मिनिट कोई और चीज हमारा ध्यान खींच लेती है । फिर अचानक कोई भावना उमड़ती है और हम उस में बह जाते है ।
जो इस तरह की अस्थिर मानसिक स्थिति वाले है उन्हें ऐसे संसारिक विचारों को रोकने की योग्यता को फिर से जागृत करना होगा जो हमारी एकाग्रता को तोड़ कर हमें गहरे ध्यान की स्थिति में जाने से रोकते है ।
प्राय हम सोचते है मुझे एक हफ्ते का समय मिल जाये तो मैं चुप चाप किसी शांत जगह, कोई शांत पर्वत पर बैठ कर राजयोग का अभ्यास करूंगा ।
वहां ध्यान भंग करने वाली किसी चीज की चिंता नहीं करनी होगी और मैं बहुत तेजी से आगे बढ पाऊगा ।
वास्तव में हम जीवन की आपाधापी से कभी बाहर जाने के लिये समय निकाल ही नहीं पाते और घर में साधना करने के लिये आदर्श वातावरण होता ही नहीं ।
आधुनिक जीवन की यही चुनौतियां हैं । यदि आप ऐसी परिस्थितियों से गुजर रहे हैं तो निराश होने की जरूरत नहीं है आप ऐसे हलात में भी राजयोग में सफल हो सकते है ।
चाहे परिस्थितियों कैसी भी हो हम अपने मन को अपने लिये काम करने को अनुशासित कर सकते है ।
कम्पास को किसी भी दिशा में घुमाओ तो उसकी सुई हमेशा उतर दिशा की ओर ही अटकी रहेगी ।
हम मन को मात्र एक तरंग या विचार की ओर घुमा कर उसे इच्छित समय के लिये केंद्रित कर सकते है ।
यह तभी हो सकता है यदि हम पढ़ते हुये ध्यान का अभ्यास करें ।
ऐसा अभ्यास करने से व्यक्ति का आंतरिक संसार एक लम्बे समय तक पुस्तक में डूबा रहेगा और मन कहीं और नहीं भटकेगा ।
पढ़ते हुये राजयोग ध्यान का अभ्यास करें कैसे ?
ऐसी पठन सामग्री चुने जिसका आध्यत्मिक मूल्य तो बहुत गहरा है परंतु उसे समझने के लिये बहुत बौद्विक परिश्रम की जरूरत नहीं हो ।
इसके लिये कई पत्रिकायें, सकारात्मक चिंतन की पुस्तके, प्रेरक पुस्तकें, बाबा की मुरली बुक्स तथा दर्शन शास्त्र की अन्य पुस्तकें हो सकती है ।
अगला कदम है पढ़ने के लिये समय निकालना और उस गति से पढ़ना ताकि आप कुछ समय तक मन को पढ़ने में डुबो सके ।
आप चाहे तो वाक्यों को हाइलाईट कर सकते है ।
आप एक तिहाई या आधी पुस्तक पढ़ने का लक्ष्य तय कर सकते है ।
कितना समय पढ़ना है यह भी तय कर सकते है ।
हर बार एक से दो घंटे का समय पढ़ने में लगावें ।यदि आप को यह ज्यादा लगता है तो शुरू में आप आधा घंटा लगाये । फिर धीरे धीरे यह समय तीन घंटे तक या ज्यादा बढ़ा लें ।
जब आप इस स्तर तक पहुंच जयेंगे तो आप को अपने मन को तुरंत शांत स्थिति में ले जाने की योग्यता आ जायेगी । आप मन को बिंदु रूप या ईष्ट के रूप पर टिका सकेंगे ।