क्षमा एक महान गुण है । हम सभी क्षमा करते भी है । छोटी मोटी भूल होने पर भी हम कहते है आई अम सॉरी
परंतु हकीकत यह है कि क्षमा करने के बाद भी बातें मन से निकलती नहीं है ।
-जिन व्यक्तियों ने कभी हमारे से बदसलूकी की है, हमें बुरा भला कहा है, उनको देखते ही या उनके बोलते ही हमारे मन में टकराव के विचार चलने लगते है । उनके प्रवचन तो बिल्कुल अच्छे नहीं लगते है ।
ऐसे व्यक्तियों के साथ हो रहे मानसिक टकराव से बचने का सबसे बढ़िया तरीका है, जैसे ही वह सामने आते है तुरंत कोई और आत्मा जिस से आप को बहुत स्नेह है उसे मन में देखने लग जाओ और मन में बाबा की याद में रिपीट करो आप स्नेही है स्नेही है ।
-या
किसी बड़े समूह को मन से तरंगें देने लग जाओ । तब उस टकराव वाली आत्मा का आप पर असर नहीं होगा । उसके संकल्प हमें डिस्टर्ब नहीं करेंगे ।
मान लो वह प्रवचन कर रहा/रही है आप मानसिक रूप से दूसरों को तरंगें दो आप को मन में सकून मिलेगा ।
यह इसलिये होता है क्योंकि इथर के द्वारा आप के संकल्प आप की स्नेही आत्माओं से जुड़ जाते है और उन से शक्ति प्राप्त करने लगते है । आप के ये विचार एक कवच का काम करते है और दोषी आत्माओं के बुरे विचारों से हमें बचाती है ।
बाधा उपस्थित होने पर भी क्रोध न करना और शांत भाव बनाये रखना क्षमा का लक्षण है ।
जैसे ही आपको लगे कि किसी ने अचानक चोट पहुंचाई है, दुख दिया है, उसी समय भगवान को याद कर के कहो कि भगवान मेरी सहायता करो ताकि यह दुःख अंदर तक न पहुंचे और ना घृणा का नासूर बने । भीतर तक पहुंचने से पहले ही घृणा को बाहर निकाला जा सकता है अन्यथा यह चोट काफी लम्बे समय तक दुखी करती रहती है ।
यदि घृणा और चोट भीतर तक बैठ गई है तो तुरंत किसी अध्यात्मिक व्यक्ति , जिस पर आप का विश्वास है और जो बातों को समा सकता है, उस के पास जाओ और अपने मन की बात कह डालो । भगवान से योग लगाते हुये कहो क़ि कष्ट देने वाले पर कृपा करें । मन का क्षोभ बाहर निकल जायेगा ।
संसार में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जिस में अपराध बोध न हो और जिसने कोई गलती न की हो । भगवान अपनी शरण में आने वाले हरेक व्यक्ति की रक्षा करता है । इसलिए भगवान के चित्र के सामने या मन में भगवान से शक्ति और विल पावर बढ़ाने की कामना करें ।
दूसरों के प्रति द्वेष, घृणा या स्वयं के प्रति अपराध बोध इस से हम स्वयं को ही हानि पहुंचाते है ।
दूसरों से आहत हो कर हम स्वयं को अधिक अशांत करते है ।
जब हम स्वयं अशांत होंगे तो अपने आस पास तथा विश्व में शांति स्थापन की बात कैसे करते है ।
कुछ उंच पदों पर बैठी आत्मायें बदले की भावना से काम करती है वह आप की आवाज को दबा देगी । आप ऐसी आत्माओं के प्रति भी कल्याण का भाव रखो । अपने सकारात्मक काम में लगे रहो । ऐसी आत्माओं को सरकार या भगवान समय आने पर सुधार देगा । तब तक वह मानसिक रूप से पीड़ित रहेगी चाहे उनकी कितनी ही आरतियाँ उतारी जा रही है । याद रखो गॉड इज ट्रुथ । मन में निष्कपट भाव नहीं तो शांति नहीं आएगी चाहे कितने ही कोई आडम्बर रच ले ।
ऐसी स्थिति से बचने के लिये आप अपने को पढ़ने में व्यस्त कर दो ।
क्षमा करके भी प्राय व्यक्ति उन बातों को याद रखता है, जिस से मन अशांत रहता है । भूलना आसान नहीं है परंतु भूलने के सिवा कोई चारा नहीं है ।
अन्याय करने वाले के सम्बंध में किसी से भी अप शब्द न कहें , उसके लिये अच्छा बोले । नहीं तो आप के अपशब्द उस तक पंहुचा दिये जायेंगे जिस से समस्या बढ़ जायेगी ।
आप अच्छे काम करने में लगे रहो, उचित सहयोग देते रहो, ज़्यादा से ज्यादा ज्ञान अर्जित करने में लगे रहो, दोषी व्यक्ति को बदलने का यह सब से कारगार तरीका है ।